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दौलत - लेखनी प्रतियोगिता -27-Jun-2022

माया महा ठगिनी है जाने यह सब कोय
मोह से इसके बच न सके नर मूरख होय।

दौलत ऐसा माया रूप जिसमें फँसता मानव
अपनों का भी बैरी बने, बन जाता है दानव।

माया ऐसी लोभिनी सब में भर देती लोभ
फँसकर इसके जाल में नर करता रहे क्षोभ।

दौलत की चाहत में मानव बन जाए मगरूर
अपनों को ठोकर मारे सर चढ़ कर बोले गुरुर।

भावनाओं के भँवर पर डाल देता है यह माटी
दौलत के लोभ ने रिश्तों की अटूट डोर काटी।

लालच बुरी बला है जाने है ये दुनिया सारी
देख छलिया रूप इसका उलझ जाएँ नर-नारी।

समय बड़ा अनमोल है क़दमों को लो रोक
लोभ में अंधे होकर बचेगा जीवन में शोक।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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6 Comments

Pallavi

29-Jun-2022 09:33 PM

Nice post

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Priyanka06

28-Jun-2022 11:45 AM

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मेम

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Punam verma

28-Jun-2022 08:35 AM

Very nice

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